– विक्की रस्तोगी
बेंगलुरू – कर्नाटक हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए के तहत दायर वह आपराधिक शिकायत खारिज कर दी है,जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने आध्यात्मिक वीडियो देखने के कारण शादी के बाद शारीरिक संबंध नहीं बनाए और इस तरह यह क्रूरता की श्रेणी में आता है।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पति और उसके माता-पिता द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली और शादी के 28 दिन बाद पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई कार्यवाही रद्द कर दी।
उन्होंने कहा, “न तो शिकायत और न ही समरी चार्जशीट किसी तथ्य/घटना का वर्णन करती है, जो आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता का घटक माना जाए।
एकमात्र आरोप यह है कि वह ब्रह्माकुमारी का अनुयायी है, हमेशा बहन शिवानी ब्रह्माकुमारी के वीडियो देखता रहा है; उन वीडियो को देखकर उसे प्रेरणा मिलती रही,जिन वीडियो में हमेशा बताया जाता है कि प्यार कभी भौतिक नहीं होता, यह आत्मा से आत्मा का मिलन होना चाहिए। इस स्तर पर उसने कभी भी अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने का इरादा नहीं किया। यह निस्संदेह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(ए) के तहत विवाह बाद संबंध न बनाना क्रूरता के समान होगी, न कि यह वह क्रूरता होगी जैसा कि आईपीसी की धारा 498 ए के तहत परिभाषित की गई है।
पीठ ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि शिकायतकर्ता को फैमिली कोर्ट द्वारा विवाह के बाद शारीरिक संबंध न बनाने पर क्रूरता के आरोप में तलाक की डिक्री दी। इस प्रकार यह आयोजित किया गया “उसी आधार पर आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यदि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह उत्पीड़न में बदल जाएगी, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि पार्टियों ने दिसंबर 2019 में शादी की और उनका रिश्ता तुरंत खराब हो गया। शिकायतकर्ता-पत्नी ने दो शिकायतें दर्ज की, एक आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध के लिए शिकायत दर्ज की और दूसरी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(ए) के तहत शादी को रद्द करने की मांग करते हुए आपराधिक दर्ज की।
पत्नी का कहना था कि पति ब्रह्माकुमारी समाज की बहनों का अनुयायी है, इसलिए जब भी वह उसके पास जाती तो वह उससे कहता कि* उसे शारीरिक संबंध बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए आरोप यह था कि ब्रह्माकुमारी समाज का अनुयायी होने के नाते याचिकाकर्ता शादी नहीं करने का विकल्प चुन सकता था।
कोर्ट ने कहा,-
“क्रूरता का अर्थ किसी के प्रति जानबूझ कर किया गया जबरदस्ती आचरण है, जो किसी महिला को आत्महत्या करने या महिला के जीवन को गंभीर चोट या खतरे का कारण बनने की संभावना की प्रकृति का हो।
दूसरा हिस्सा उत्पीड़न से संबंधित है, जहां इस तरह का उत्पीड़न उसे या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति को किसी भी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए जबरदस्ती करने की दृष्टि से गलत है। आईपीसी की धारा 494(ए) ही पति या रिश्तेदार को दंडित का प्रावधान करते हैं, जिससे महिला के साथ कोई क्रूरता की गई हो। वर्तमान शिकायत को देखते हुए आईपीसी की धारा 494(ए) के तहत क्रूरता का कोई घटक नहीं दिखाई देता है।”
ससुराल वालों ने भी आरोपमुक्ति की मांग करते हुए दावा किया कि दंपति अलग-अलग रहते हैं और उनका इस मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है।
चार्जशीट का हवाला देते हुए पीठ ने कहा,
“जहां तक आरोपी 2 और 3/ सास और ससुर का संबंध है, शिकायत या चार्जशीट के सारांश में इसमें रत्ती भर भी तत्व शामिल नहीं है। आईपीसी की धारा 498ए… शिकायत पर गौर करने से ससुराल वालों यानी ससुर और सास द्वारा किसी भी तरह की क्रूरता का कोई संकेत नहीं मिलता है और यह स्वीकृत तथ्य है कि माता-पिता कभी युगल के साथ नहीं रहे। ऐसे तथ्यों के मद्देनजर अगर माता-पिता के खिलाफ आगे की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
तदनुसार कोर्ट ने याचिका को अनुमति दी।
केस टाइटल: एबीसी और अन्य और कर्नाटक राज्य और एएनआर