

नई दिल्ली/हल्द्वानी- न्याय की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और एएस ओका की बेंच ने रेलवे के अतिक्रमण हटाने के तरीके को पुनर्वास के बिना स्वीकार नहीं किया है। उत्तराखंड हाई कोर्ट के बीती 20 दिसंबर के उस फैसले पर रोक लगा दी है,जिसमे एक सप्ताह में बनभूलपुरा के रेलवे अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया गया था।
इस आदेश का पालन कराने के लिए पुलिस और प्रशासन की तैयारी को लेकर यहाँ बसे हज़ारो लोगो के दिलो में दहशत फैली हुई थी। उन्हें डर था कि अगर उनका आशियाना उजड़ गया तो वो कहा जायेंगे ? लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। इस सुप्रीम फैसले पर लोग का कहना है कि ऊपर वाले ने उनकी दुवाओ को कबूल कर लिया। अब इन लोगो के बीच न्याय की अलख जगी है। 7 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई करेगा।

आपको बता दे कि गोला पुल को लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका से शुरू हुआ यह मामला लगभग चार हज़ार से ज़्यादा घरो और लगभग पचास हज़ार से ज़्यादा लोगो के उजड़ने का कारण बन सकता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले पर स्थगन देकर लोगो को राहत की सास दी है,जो पिछले एक हफ्ते से अपने आशियाने उजाड़े जाने के खिलाफ कैंडल मार्च,धरना और प्रदर्शन कर सरकार से पैरवी करने और खुद को न उजाड़े जाने की मांग कर रहे थे। इस पूरे मामले में हल्द्वानी के कांग्रेसी विधायक सुमित हृद्येश और प्रतिपक्ष नेता यशपाल आर्य सहित सलमान खुर्शीद ने पैरवी की थी।

हल्द्वानी में रेलवे की कथित भूमि को लेकर इस पर काबिज़ लोगो को हटाने को लेकर देश के मीडिया के साथ ही विदेशी मीडिया ने भी काफी दिलचस्पी दिखाई थी। सोशल मीडिया में भी कुछ लोग समर्थन में तो कुछ लोग विरोध में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
शुरू से ही कुछ मीडिया ने तो आज़ादी से पहले बसे लोगो को अतिक्रमणकारी बताना शुरू कर दिया था। जबकि दूसरे पक्ष अर्थात पीड़ित पक्ष की बातो को उनके साक्ष्यों को समझने की ज़रुरत नहीं समझी थी। उनकी खबरों से ऐसा लग रहा था कि काबिज़ लोगो ने रेलवे की भूमि पर अवैध अतिक्रमण किया हुआ है।
जिस भूमि को लेकर इतना विवाद है वहा सरकारी इंटर कॉलेज,अस्पताल,जल संस्थान की पानी की टंकी,पुलिस चौकी,मंदिर, मस्जिद से लेकर तमाम सुख सुविधाये मुहैया सरकार द्वारा पिछले सत्तर सालो से ज़्यादा समय से दी जा रही थी। लेकिन रेलवे ने कभी भी इस ज़मीन पर अपना कोई हक़ नहीं जताया। यहां रहने वालो को विधुत विभाग ने बिजली कनेक्शन दे रखे थे। नगर निगम द्वारा हाउस टैक्स भी लगाया गया था। उनकी सड़के नगर निगम और जनप्रतिनिधियों के फंड से विकासिये कार्य किये गए थे।

नगर निगम ने सूचनाधिकार में इस भूमि को नजूल की भूमि बताया था, सैकड़ो लोगो के पास नजूल भूमि के लीज़ के पट्टे मौजूद है। कई लोगो ने आज़ादी के बाद यहां रह गई शत्रु संपत्ति को सरकार से क्रय कर रजिस्ट्री करा रखी है।
यह मामला काफी पेचीदा है कि विशेष कर रेलवे की भूमि के गजट को लेकर,रेलवे जिस भूमि पर दावा कर रहा है उस पर रेलवे का गजट नहीं है ? ऐसी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में अब्दुल मलिक ने भी लगाईं है। अब सुप्रीम कोर्ट सभी तथ्यों का अवलोकन कर इस पर अपना फैसला सुनायेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे को नोटिस जारी किया है।
कुल मिलाकर अब मामला रेलवे और काबिज़ लोगो के बीच मालिकाना हक़ का बन गया है। राज्य सरकार इस मामले पर खामोश है और न्यायालय के फैसले को मानने की बात कर रही है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ही सबकी आस लगी हुई है।