- – चार साल के लम्बे इंतज़ार के बाद हुई रिलीज़
- – उत्तराखंड की संस्कृति के साथ खिलवाड़ और महिला सशक्तिकरण जैसे पहलुओं को किया उजागर
- – उत्तराखंड के एक साथ 15 सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई।
– नाहिद खान की फिल्म निर्माता फ़राज़ शेर से विशेष बातचीत
रुद्रपुर – इन दिनों सबसे ज़्यादा चर्चा 23 सितम्बर को रिलीज़ हुई बॉलीवुड अंदाज़ में और उत्तराखंडी भाषा में बनी ‘माटी पहचान’ फीचर फिल्म को लेकर है। इस फिल्म की पूरी टीम इन दिनों फिल्म के प्रमोशन के लिये हल्द्वानी,रुद्रपुर,काशीपुर और अल्मोड़ा पहुंची है। फिल्म की टीम जल्द ही दूसरे शहरों में जाकर फिल्म का प्रमोशन करेगी। फिल्म को मिल रहे अपार प्यार से फिल्म के निर्माता और उनकी टीम उत्साहित है। इस फिल्म को दर्शको द्वारा काफी सराहा जा रहा है। फिल्म में पलायन से लेकर महिला सशक्तिकरण जैसे उत्तराखंड के कई मुद्दों को बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है।
अगर बात इस फिल्म के बजट की करे तो तकरीबन यह ढाई करोड़ से ज़्यादा बजट में यह फिल्म बनी है। वर्ष 2018 में 40दिवसीय रात दिन शूट के बाद यह फिल्म आम दर्शको के बीच चार साल बाद अर्थात 23 सितम्बर 2022 को परदे पर आ सकी।
फिल्म के निर्माता फ़राज़ शेर इस फिल्म को लेकर काफी उत्साहित है,फिल्म की शूटिंग से लेकर उसके रिलीज़ तक की यात्रा को लेकर ‘इंडिया नज़र’ के प्रधान सम्पादक नाहिद खान की फ़राज़ शेर से विशेष बातचीत की। बड़ी बेबाकी से फ़राज़ शेर साहब ने फिल्म से जुड़े सब पहलुओं को बताया।
सवाल – उत्तराखंड में बॉलीवुड अंदाज़ में फिल्म बनाने का आइडिया कैसे आया ?
फ़राज़ शेर – देखिये जब मनमोहन चौधरी की लिखी इस फिल्म की कहानी मेरे पास आई ,तो वो उत्तराखंडी भाषा में थी। जो पूरी तरह समझ नहीं पा रहा था। इसे बाद में हिंदी में तब्दील किया गया। उसके बाद यह कहानी मैने पड़ी जो बहुत खूबसूरत लगी और इस पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया गया। शुरू में इस फिल्म को कम बजट में शूट करना चाहते थे। लेकिन लीक से हटकर कुछ नया करने का फैसला लिया गया और इसे बॉलीवुड अंदाज़ में शूट किया गया। जिससे पोस्ट प्रोडक्शन का खर्च काफी बाद गया। इसे मुंबई से एडिट करवाया गया। इसकी हर बारीकी पर रिसर्च किया गया। जिससे हम उत्तराखंडी भाषा में एक अच्छी फिल्म दे पाये। लेकिन ख़ुशी है कि परदे पर आने के बाद यह उत्तराखंडी भाषा की पहली बेहतरीन फिल्म बन गई है। जिसको सभी जगह सराहा जा रहा है।
सवाल – उत्तराखंडी भाषा में होने के कारण क्या फिल्म अपना लगा हुआ पैसा निकाल पायेगी ?
फ़राज़ शेर – हमने पहले ही यह रिस्क ले लिया था, कि ऐसी फिल्म बनाना घाटे का सौदा है। लेकिन साथ ही अच्छे विषय की कहानी होने की वजह से और उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान और यहां की मूलभूत समस्याओ को उजागर करने के लिये हमने फिल्म बनाने का फैसला लिया। समस्याओ को आमजन तक पहुंचाने के लिये फिल्म से बेहतर कोई मंच नहीं है। हमने फिल्म के माध्यम से पहाड़ के दर्द को उकेरा है। उम्मीद है कि जिस तरह से फिल्म को दर्शको का प्यार और आशीर्वाद मिल रहा है। उससे भरपाई होने की कुछ उम्मीद बंधती है।
सवाल – कितने सिनेप्लैक्स में रीलिज़ किया आपने माटी पहचान को ?
फ़राज़ शेर – हमने उत्तराखडं के 15 सिनेमाघरों में एक साथ माटी पहचान को रीलिज़ किया है,सब जगह से हाउस फुल के रिजल्ट मिल रहे है। उससे मेरे साथ फिल्म की पूरी टीम उत्साहित है। लोग हमसे इसका दूसरा भाग बनाने की मांग कर रहे है। यदि सब कुछ सही रहा तो हम उसपर गंभीरता से विचार करेंगे। सब कुछ दर्शको के हाथो में है। अभी फिल्म देहरादून,अल्मोड़ा,
हल्द्वानी,हरिद्वार,काशीपुर,मसूरी,नैनीताल,पिथौरागढ़,रामनगर,रुड़की,और रुद्रपुर में कामयाबी के साथ चल रही है।
सवाल – फिल्म को रिलीज़ होने में इतना समय क्यों लगा ?
फ़राज़ शेर – दरअसल फिल्म को हमने 2018 में 40 दिन के शेड्यूल में शूट कर लिया था। जब इसको बैकग्राउंड म्यूजिक और एडिटिंग के बाद 2020 रीलीज़िंग की तैयारी की जा रही थी। तभी कोरोना की वजह से फिल्म को रोकना पड़ा। फिर दूसरा वेव आ गया और इसकी रिलीजिंग टलती रही। अब फाईनली इसे हमने 23 सितम्बर 2022 को इसे रिलीज़ कर दिया है।
सवाल – आपकी कैसे फिल्म बनाने की सोच थी ?
फ़राज़ शेर – मेरे ज़ेहन में 1984-85 के दौर की फिल्म का आईडिया था, जिसमे विलेन तो होता था। लेकिन वैसा वायलेंस नहीं होता था। ऐसी ही फिल्म को लेकर दिमाग में कई सब्जेक्ट थे। मै ऐसी फिल्म बनाना चाहता था, जिसमे पहाड़ी कल्चर हो और फिल्म साफ़ सुथरी फिल्म हो जिसे परिवार के साथ बैठ कर देखा जा सके हो। माटी पहचान को हिंदी में बनाने को लेकर काफी कहा जा रहा था। लेकिन मैं इस फिल्म की मूल उत्तराखंडी भाषा में बनाना चाहता था। हालांकि उत्तराखंड में कुल 40 ही थियेटर है। ऐसे में फिल्म में जो बजट लगेगा उसकी रिकवरी हो भी पायेगी या नहीं यह सोचा ही नहीं। एक अच्छी फिल्म को आमदर्शको को देकर काफी सुकून मिला है।
सवाल – उत्तराखंड की फिल्म नीति को लेकर आपका क्या कहना है ?
फ़राज़ शेर – देखिये क्षेत्रीय भाषा की फिल्मो को प्रोत्साहित करने और स्थानीय कलाकारों को काम सुलभ कराने के लेकर सरकार को अपनी नीति को ठोस बनाना होगा। साथ ही सब्सिडी में भी काफी सुधार करना होगा। फिलवक्त तो सब्सिडी के लालच में बहुत काम बजट की फिल्मे बनाकर और उन्हें कुछ थियेटरों में लगाकर निर्माता सब्सिडी हासिल करनी की दौड़ में लगे रहते है। इसमें बहुत सुधार की ज़रुरत है ताकि सही हाथो में लाभ पहुंचे।
सवाल – क्या आपने अपनी फिल्म को टैक्स फ्री कराने की कोशिश की ?
फ़राज़ शेर – बहुत अच्छा सवाल है,लेकिन यह फैसला तो सरकार को करना है। एक अच्छी फिल्म का टैक्स फ्री कर दिया जाये तो यह ज़्यादा दर्शको तक जाएगी और फिर क्षेत्रीय भाषा के सिनेमा को ऊर्जा मिलेगी। सरकार से निवेदन करेंगे कि वो हमारी फिल्म को देखे और टैक्स फ्री करे।