
– प्रदीप फुटेला
ग्रेटर नोएडा – प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक आचार्य प्रशांत ने कहा है कि संस्था द्वारा देश के प्रत्येक घर में उपनिषद की प्रति निशुल्क उपलब्ध करवाने के लिए एक मुहिम शुरू की गई है। जिसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को अध्यात्म से जोड़ना है, इसी मिशन को लेकर संस्था द्वारा देश के विभिन्न राज्यो में वेदांत महोत्सव शिविर आयोजित किये जा रहे हैं वेदान्त ही जीवन को एक नई दिशा देने में एक मात्र उपाय है।
संस्था द्वारा केसीसी कॉलेज में आयोजित तीन दिवसीय सत्र के समापन अवसर पर आचार्य प्रशान्त ने संस्था द्वारा आयोजित की जा रही गतिविधियों का विस्तार से खुलासा किया। उन्होंने कहा कि हमे देखना होगा हम जीवन जी कैसे रहे है हमारी संगत कैसी है इसी से हमारी दिनचर्या निर्धारित होती है। गलत संगत व गलत जीवन ही दुखो का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि जब भी हम धारा के विपरीत चलते है, तब अहंकार को चोट पहुंचती है ।सही जीवन जीने के लिए सही लक्ष्य का होना जरूरी है नही तो जीवन भर भटकाव में ही रहना पड़ेगा यह जीवन का मूल सिद्धांत है।
जीवन के आंतरिक बदलाव जरूरी हैं इसी से तय होता है हमारा जीवन। अतीत के दुख दर्द भूल नही पाते मन हमेशा विचारो,धारणाओ, काल्पनिक विचारों में खोया रहता है, तभी तो जीवन मे उथल पुथल रहती है मन के भीतर जो कचरा भर है उसकी सफाई के लिए साधना की जरूरत होती है। वह आमतौर पर लोग करते नही दुनिया अंधी दौड़ में लगी है।
उन्होंने कहा कि पैसा जरूरी है लेकिन जीवन को दांव पर लगाकर कमाया गया पैसा किसी काम नही आने वाला है। आचार्य प्रशान्त ने कहा कि अध्यात्म बड़ा सरल है। फिर भी लोग मन में कई भ्रांतियां पाल लेते हैं कि कहीं आध्यात्मिक होने पर घर छोड़कर संन्यास लेना पड़ जाए, कहीं बैरागी न हो जाऊं, कहीं गृहस्थ धर्म न छोड़ दूं। अध्यात्म तो हमें जीवन जीना सिखाता है। जैसे कोई भी मशीन खरीदने पर उसके साथ एक मैन्युअल बुक आती है, ऐसे ही तन-मन को चलाने के लिए मैन्युअल बुक गीता आदि आध्यात्मिक शास्त्र और गुरु होते हैं जो हमें शरीर, इंद्रियों, मन, बुद्धि अहंकार का प्रयोग करना सिखाते हैं। घर-गृहस्थी में तालमेल बिठाना सिखाते हैं, समाज में आदर्श के रूप में रहना सिखाते हैं, मन को सुलझाना सिखाते हैं।
अत: धर्म कोई भी हो, लेकिन सभी को आध्यात्मिक अवश्य होना चाहिए। अध्यात्म कहता है कि बीतते हुए हर पल का आनंद लो, उस पल में रहो, हर पल को खुशी के साथ जियो। हर परिस्थिति, सुख-दुख, मान-सम्मान, लाभ-हानि से गुजरते हुए अपने में मस्त रहो। द्वंद्वों में सम्भाव में रहो क्योंकि मुक्ति मरने के बाद नहीं, जीते जी की अवस्था है। जब हम अपने स्वरूप के साथ जुड़कर हर पल को जीते हैं, तब वह जीते जी मुक्त भाव में ही बना रहता है। अध्यात्म कोई मंजिल नहीं, बल्कि यात्रा है। इसमें जीवन भर चलते रहना है। यह यात्रा हमें वर्तमान में रहना और अभी में आनंद लेना सिखाती है।
उन्होंने कहा कि यदि ‘अभी में’ रहकर उस आनंद भाव में नहीं आए तो कभी हम आनंद में नहीं आ पाएंगे और जब भी आएंगे, उस समय भी अभी ही होगा। वैसे हम पूरा जीवन अभी-अभी की शृंखला में जीते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक अभी-अभी-अभी में ही जीते हैं। फिर भी मन भूतकाल या भविष्य में ही बना रहता है और भूतकाल का दुख या भविष्य का डर या लालच में ही मन घूमता रहता है लेकिन जब हम अभी में आते हैं, उसी समय से हमारे जीवन में अध्यात्म का प्रारम्भ होता है और फिर हम इस अभी-अभी की कड़ी को पकड़ कर रखते हैं। इसलिए मुक्ति अभी में है, भविष्य में नहीं।
अत: यदि हम जीवन भर अभी को पकड़ कर रखें फिर हम जहां हैं जैसे हैं, वहीं आध्यात्मिक हो सकते हैं।प्रत्येक व्यक्ति अध्यात्म से जुड़े यही इस संस्था का उद्देश्य है इसी मिशन को लेकर संस्था द्वारा देश के विभिन्न राज्यो में वेदांत महोत्सव शिविर आयोजित किये जा रहे हैं वेदान्त ही जीवन को एक नई दिशा देने में एक मात्र साधन है।