– नीरज मेहता
धारचूला – पिथौरागढ़ जिले के बेलतड़ी और आस पास के गांवों तक, आजादी के 70 सालों बाद भी सड़क ना होने से ग्रामीणों ने आगामी चुनाव में बहिष्कार का मन बना लिया है और गांव में ही अनिश्चित कालीन धरने पर बैठ गए हैं।
कहते हैं सड़क विकास का आईना होती हैं, लेकिन जब सड़क गांवों तक पहुचे ही नहीं तो विकास की उम्मीद कैसे की जा सकती है। पिथौरागढ़ मुख्यालय से लगभग 28 किमी दूर ग्रामीण सड़क की मांग को लेकर अनिश्चित कालीन धरने पर बैठे हैं। ग्रामीणों की मानें तो गांव से 2 किमी पहले ही सड़क का काम बंद कर दिया गया। ऐसे में 12000 की आबादी वाले गांवों में बुजुर्ग, महिलाओ और बच्चों के लिए मूलभूत सुविधाओं का टोटा पड़ गया है। सड़क ना होने से गांवों में उत्पादित अनाज, फल, सब्जियां बर्बाद हो रही हैं। जिससे आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। ग्रामीणों ने अब आर पार की लड़ाई लड़ने का मन बनाते हुए रोड नहीं तो वोट नहीं का नारा बुलंद कर दिया है।
ग्रामीणों का कहना है कि सड़क के लिए कई बार प्रशासन से गुहार लगाई गई। लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है, और ना ही कोई सुनने वाला है। सड़क सुविधा न होने से ग्रामीण स्वास्थ सुविधा को तरसते हुए काल का ग्रास बन रहे हैं। इन दिनों ग्रामीण सुबह से ही धरने पर बैठ जा रहे हैं। संबंधित विभाग केवल ग्रामीणों की भावनाओं से खेल रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो वो मुख्यालय में अपना टेंट गाढ़ कर सड़क के लिए लड़ाई लड़ते रहेंगे।
उत्तराखंड सरकार के हर गांवों को मोटर मार्ग से जोड़ने के सभी दावे यहां धराशायी होते नज़र आते हैं। जहां सड़क न होने से ग्रामीण खासी परेशानी में हैं। एक ओर युवा वर्ग पलायन कर बाहर चले जा रहे हों। तो वहीं गांवों में बुजुर्ग और महिलाएं अपनी माटी से जुड़ वहीं विकास की आस लगाए बैठीं हैं। बेलतड़ी गांव में सड़क के लिए लड़ी जा रही लड़ाई कब पूरी होगी ये तो देखने वाली बात होगी ही। साथ ही “रोड नहीं तो वोट नहीं” नारे पर शासन प्रशासन का क्या रुख होगा ये भी देखना होगा ?