

रूद्रपुर – नगर की प्राचीन व सुप्रसि़द्ध मुख्य रामलीला की सातवीं रात्रि की श्रीरामलीला मंचन में राम लक्ष्मण का सीता जी को पंचवटी में न पाकर व्याकुल हो जाना, सीता जी की खोज करना, राम की जटायु से भेंट, जटायु की मृत्यु, शबरी के बेर, प्रभु श्रीराम एवं उनके अनादि भक्त हनुमान का महामिलन, राम-सुग्रीव मित्रता, बाली वध एवं हनुमान जी का माता सीता जी की खोज में रवाना किये जाने तक की बहुत ही सुन्दर व भव्य लीला का मंचन सम्पन्न हुआ।
इससे पूर्व श्री रामलीला का उद्घाटन मुख्य अतिथि श्रीमति रमेश कान्ता एवं श्रीराम बाजार सिडकुल के व्यवसायियों एवं समाजसेवियों विपिन त्यागी,एस.के. सक्सैना, उमेश शर्मा, सुशांत चौहान नें प्रभु श्रीराम के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्जवलित कर किया।
श्री रामलीला कमेटी के संरक्षक पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष तिलक राज बेहड़ ने भी आज मंच पर आकर अपने पुराने अनुभव सांझे किये व कमेटी तथा कलाकारो का उत्साहवर्धन किया। श्री रामलीला कमेटी ने अतिथियों का माल्यार्पण कर व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
प्रथम दृश्य में राम व लक्ष्मण पंचवटी वापस आते है तो वहां सीता को न पा व्याकुल हो जाते है। राम-लखन सीताजी को खोजते-खोजते आगे बढ़ते हैं तो उन्हें घायल जटायु मिलता है, जो यह बताता है कि सीता को रावण हर ले गया है। जटायु के बताये दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुये राम-लखन की मुलाकात माता शबरी से होती है। शबरी रामभक्ति में लीन होकर प्रभु को बेर खिलाती है।
आगे बढ़ते हुये राम-लखन किश्किन्धा पहुंचते हैं, जहां राजा सुग्रीव की आज्ञा से हनुमान उनका भेद जाननें ब्राहमण का भेद बनाकर आते है। हनुमान अपने बुद्धि कौशल का इस्तेमाल करते हुये अनेंकों सवाल पूछते है। जब उन्हें यह पता लगता है कि यह दोनो सन्यासी युवक राम-लक्ष्मण हैं, तो हनुमान भावुक हो जाते है। वह राम के चरणों में गिर जाते है और अपना असली रूप दिखाते है। हनुमान की आंखों से अश्रुधारा बह निकलती है। वह अपने प्रभु राम से थोड़ा गिला शिकवा करते हुये कहते हैं कि हे दीनानाथ, मैं तो अज्ञानी वानर ठहरा, प्रभु को पहचाननें में देर कर बैठा। पर आप तो सर्वज्ञ हैं, आपनें अपनें अनादि भक्त हनुमान को पहचाननें में ईतनी देर क्यों कर दी।
हनुमान राम-लक्ष्मण को अपनें कंधों पर बैठाकर सुग्रीव के पास ले जातें है। राम व सुग्रीव परस्पर मित्रता की संधि करते है। हनुमान राम को सुग्रीव की दारूण कथा सुनाते हुये उसके बड़े भाई बाली द्वारा छीने गये राजपाट व पत्नी की बात बताते हैं, तो राम सुग्रीव को बाली को ललकारनें के लिये भेजते है। सुग्रीव बाली के दरबार पहुंचकर उसे ललकारता है । बाली सुग्रीव की खासी मरम्मत करता है, लेकिन राम उसका वध नहीं करते। सुग्रीव जैसे तैसे वापस जान बचाकर आता है तो राम उसे बताते है कि दोनों भाईयों की षक्लो सूरत एक जैसी है, इसलिये अब एक खास निशानी लेकर जाओ। इस बार राम बाली का वध कर देंतें है। सुग्रीव को किश्किन्धा का राजपाट वापस मिल जाती है। सुग्रीव अब सीता की खोज के लिये चारों दिशाओं में अपनी वानर सेना को भेजता है। सबसे महत्तवपूर्ण दक्षिण दिशा में राजकुमार अंगद एवं हनुमान को भेजा जाता है।
राम की भूमिका में मनोज अरोरा, लक्ष्मण की भूमिका में राजकुमार कक्कड़, हनुमान की भूमिका में सुशील गाबा, जटायु की भूमिका में गोला ईदरीसी, सुग्रीव की भूमिका में पवन गाबा पल्ली, बाली की भूमिका में विशाल अनेजा, शबरी की भूमिका में नरेश छाबड़ा, गणेश भगवान की भूमिका में आशीश ग्रोवर, तारा की भूमिका में सुमित आनन्द, नल की भूमिका में मोहन अरोरा, नील की भूमिका में हर्शित, छोटा अंगद अश्मन अरोरा, छोटा हनुमान आयुष्मान सुशील गाबा व सेनापति कनव गंभीर ने बहुत ही सुन्दर अभिनय कर उपस्थित हजारो जनता का मन मोह लिया। श्रीरामलीला संचालन वरिश्ठ पत्रकार व श्रीरामलीला कमेटी के मंच सचिव केवल कृष्ण बत्रा नें किया।
पूर्व कैबिनेट मंत्री तिलक राज बेहड़ भी पहुंचे रामलीला देखने
श्रीरामलीला कमेटी के संरक्षक पूर्व कैबिनेट मंत्री तिलक राज बेहड़ भी श्री रामलीला का मंचन देखनें पहुंचे। श्री बेहड़ नें अपने संबोधन में इस स्टेज को लेकर हुये संघर्श व उसके बाद इसकी साज सज्जा व निर्माण के लिये समस्त कमेटी व क्षेत्रीय जनता के सहयोग को याद करते हुये कहा कि आज जनसहयोग व कमेटी की मेहनत से यह मंच एक विराट स्वरूप ले चुका है। यह मंच बहुत मान्यताओं वाला मंच है। आज वो जो कुछ भी है, वो इ समंच की ही देन है। श्रीरामलीला कमेटी ने श्री बेहड़ को षाल ओढ़ाकर एवं स्मृमि चिन्ह देकर सम्मानित भी किया। इसके बाद श्री बेहड़ नें श्रीरामनाटक क्लब के कलाकारों से भी भेंट कर उनका हौंसला बढ़ाया।