– विक्की रस्तोगी
कलकत्ता – कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा है कि एक मजिस्ट्रेट सिर्फ शिकायत दर्ज करने में विलंब के आधार पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत आवेदन खारिज नही कर सकता।
जस्टिस विवेक चौधरी ने कहा कि मजिस्ट्रेट यह निष्कर्ष नही निकाल सकता कि शिकायत दर्ज करने में विलंब के कारण यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आवेदन को अत्यधिक देरी के आधार पर एफआईआर के रूप में नही माना जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि *ललिता कुमारी मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की संहिता की धारा 156(3) के तहत* एक आवेदन को प्राम्भिक जांच या एफआईआर के समान मानते हुए जांच के लिए पुलिस प्राधिकरण को भेजे बगैर देरी के आधार पर फेकने का कोई निर्देश नही है।
इस बाबत मजिस्ट्रेट ने मुख्य रूप से इस आधार पर सहित की धारा 156(3) के तहत आवेदन को खारिज कर दिया था कि आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने के लिए एफआईआर की अर्जी में असामान्य देरी हुई थी।
मजिस्ट्रेट ने उल्लेख किया कि कथित घटना 29 नवंबर 2018 को हुई थी। याचिकाकर्ता ने तकरीबन दो वर्ष पूर्व बीत जाने के बाद 12 नवंबर 2020 को शिकायत दर्ज कराई थी और इस तरह की शिकायत दर्ज करने में देरी का स्पष्टीकरण संतोषजनक नही था।
कोर्ट के सामने यह दलील दी गई थी कि ललिता कुमारी मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कभी भी मजिस्ट्रेट के विलंब के आधार पर संहिता की धारा 156(3) के तहत एक आवेदन को सीधे खारिज करने का अधिकार नही देता।