– विक्की रस्तोगी
नई दिल्ली – मालिकाना हक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि रेवेन्यू रिकार्ड में संपत्ति के दाखिल खारिज से न तो संपति का मालिकाना हक मिल जाता है और न ही समाप्त हो जाता है।
संपति का मालिकाना हक सिर्फ एक सक्षम सिविल कोर्ट की ओर से ही निर्धारित किया जा सकता है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि रेवेन्यू रिकार्ड में केवल एक एंट्री से उस व्यक्ति को संपति का हक मिल जाता है जिसका नाम रिकार्ड में दर्ज है।
पीठ ने कहा कि रेवेन्यू रिकार्ड या जमाबंदी में एंट्री का सिर्फ वित्तीय उद्देश्य होता है जैसे भू राजस्व का भुगतान ऐसी एंट्री के आधार पर कोई मालिकाना हक नही मिल जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा है कि जहाँ तक एक संपति के अधिकार का संबंध है, यह सिर्फ एक संक्षम सिविल कोर्ट की ओर से ही तय किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि कानून के निर्धारित प्रस्ताव के अनुसार दाखिल खारिज से जुड़ी एंट्री व्यक्ति के पक्ष में कोई अधिकार, टाइटल या उंसके हित में कोई निर्णय नही करती। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि रेवेन्यू रिकार्ड में दाखिल खारिज सिर्फ वित्तीय उद्देश्य के लिए है।
कोर्ट ने साफ किया कि कानून के निर्धारित प्रस्ताव के मुताबिक, अगर संपत्ति के मालिकाना हक के संबंध में कोई विवाद है या विशेष रूप से जब वसीयत के आधार पर दाखिल-खारिज की मांग की जाती है, तो पार्टी जो अधिकार के आधार पर टाइटल या अधिकार का दावा कर रही है वसीयत को लेकर उपयुक्त सिविल कोर्ट में जाना होगा।
सिविल कोर्ट में अपने अधिकारों को निर्धारित कराना होगा। उसके बाद ही सिविल कोर्ट के समक्ष फैसले के आधार पर आवश्यक दाखिल खारिज की एंट्री की जा सकती है।