- क्या राज्य में कमल खिलेगा ?
- क्या कांग्रेस सत्ता में आएगी ?
- क्या आप की झाड़ू गुल खिलायेगी ?
– अज़हर मलिक
काशीपुर – उत्तराखंड राज्य का गठन करीब 21 साल पहले हुआ था। अब तक यहां 11 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। उत्तराखंड प्रदेश की सत्ता पर हमेशा कांग्रेस या भाजपा का ही कब्ज़ा रहा है। अन्य पार्टिया उत्तराखंड में नहीं पनप नहीं पाई। उत्तराखंड में सिर्फ एक मुख्यमंत्री ने ही अपने कार्यकाल के 5 साल पूरे किए हैं।
पुनः सत्ता पर काबिज़ होने के लिये 5 साल से पहले मुख्यमंत्री भी राजनीतिक दलों ने मुख्यमंत्री बदले है। लेकिन उत्तराखंड का इतिहास राजनीति दृष्टिकोण से कुछ और अलग बयां करता है। उत्तराखंड की राजनीति में हर 5 साल बाद सत्ता परिवर्तन होता है। इस बार आम आदमी पार्टी की दखल उत्तराखंड के नये राजनीतिक समीकरण बनने के कयास लगाये जा रहे है। क्या उत्तराखंड में नई राजनीतिक ज़मीन तैयार होगी ? आगामी 2022 के आम विधानसभा चुनाव में क्या राजनीतिक गुल खिलेगा इसपर पढिये अज़हर मलिक की एक खास रिपोर्ट :-
उत्तराखंड की स्थापना होने के बाद अब तक उत्तराखंड में 4 विधानसभा के चुनाव हुए हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड की ग्यारहवें मुख्यमंत्री के रूप में 4 जुलाई 2021 को शपथ ली।
अगर इतिहास की बात करे तो सन 2000 में उत्तर प्रदेश से विभाजित होकर नये उत्तराखंड राज्य की स्थापना हुई थी। प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में भारतीय जनता पार्टी के नित्यानंद स्वामी को मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। वर्ष 2002 में राज्य में पहला विधानसभा चुनाव होना था, मगर इससे पहले भाजपा को लगने लगा कि यदि स्वामी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा तो सत्ता में वापसी संभव नहीं है। तब आलाकमान ने स्वामी का कार्यकाल एक साल पूरा होने से पहले ही यानी सिर्फ 354 दिन में ही नित्यानंद स्वामी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर राज्य की कमान भगत सिंह कोश्यारी को सौंप दी। मगर पार्टी आलाकमान की उम्मीद को कोश्यारी पूरा नहीं कर पाये।
सिर्फ 123 दिन तक सत्ता संभालने के बाद चुनाव में उतरे कोश्यारी पार्टी को जीत नहीं दिला सके। कांग्रेस ने भाजपा को करारी शिकस्त दी। तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस ने कद्दावर नेता नारायण दत्त तिवारी को शपथ दिलाई। नारायण दत्त तिवारी ऐसे एक मात्र मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने बखूबी राज्य की बागडोर पूरे पांच साल तक संभाली थी।
लेकिन उत्तराखंड के मतदाताओं ने विकास पुरुष कहे जाने वाले नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में लड़े गये 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त देदी। भाजपा ने सत्ता पर कब्ज़ा जमा लिया। भाजपा की और से बीसी खंडूरी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। मगर खंडूरी के खिलाफ पार्टी में विरोध के सुर उठने लगे। 839 दिन का कार्यकाल पूरा करने के बाद खंडूरी को पद हटा दिया गया। उनकी जगह रमेश पोखरियाल निशंक को राज्य की कमान सौंपी गई।
तीसरा विधानसभा चुनाव आने से पहले ही निशंक विवादों में घिर गए। भाजपा ने फिर से खंडूरी को सीएम बनाया और उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी चुनाव में उतरी। चुनाव में जो नारा चर्चित हुआ वह था- ‘खंडूरी है जरूरी’ मगर यह नारा काम नहीं आया। भाजपा 2012 विधानसभा चुनाव फिर से हार गई।
कांग्रेस सत्ता में लौटी तो राज्य की बागडोर विजय बहुगुणा को सौंपी गई। बहुगुणा 690 दिन तक सीएम रहे। उनके कार्यकाल में ही वर्ष 2013 में आपदा आई, जिसमें हजारों लोगों की जान गई और सैंकड़ों लोग लापता हो गए। कांग्रेस को लगा कि विजय बहुगुणा से लोग नाराज होंगे और उनके नेतृत्व में चुनाव में गए तो फायदा कम नुकसान ज्यादा होगा।
इसके बाद बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया गया, लेकिन रावत कांग्रेस को जीत नहीं दिला सके और वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। हरीश रावत खुद दो विधानसभा सीट से मैदान में उतरे थे, मगर दोनों जगह से वह चुनाव हार गए।
चौथे विधानसभा चुनाव में भाजपा बहुमत के साथ सत्ता में आई और पार्टी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, कहा जाता है कि रावत से न तो पार्टी के लोग खुश थे और न ही राज्य की जनता। लिहाजा, पार्टी को लगा कि उनके नेतृत्व में चुनाव में गए, तो हार पक्की है। 1453 दिन के कार्यकाल के बाद उन्हें कुर्सी से हटा दिया गया।
बीते मार्च में तीरथ सिंह रावत को राज्य की कमान दी गई। लेकिन तीरथ सिंह रावत सिर्फ चार महीने में सत्ता से बेदखल कर दिए गए। वह राज्य में अब तक सबसे कम समय तक यानी केवल 116 दिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहे। अब जबकि पुष्कर सिंह धामी को कमान सौंपी गई है।
इस बार राज्य के समीकरण काफी बदले हुए है,पहले जहां सक्रिय सपा जनाधार खो चुकी थी और बसपा का कुछ क्षेत्रों में वर्चस्व था,किंतु अब बसपा भी नेपथ्य में चली गई है। अब यहां एक नई राजनीतिक आम आदमी पार्टी का उदय हो रहा है। जिससे भाजपा और कांग्रेस दोनों राजनीतिक दलों का समीकरण गड़बड़ाने वाला है। जहाँ दिल्ली में अपनी राजनीतिक चमक से केजरीवाल देश में अपना सिक्का जमा चुके है,वही अब वो उत्तराखंड में भी अपनी राजनीतिक ज़मीन तैयार कर रहे है। उन्होंने आते ही दिल्ली की तरह यहां भी सत्ता में आते ही 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा कर दिया है।
अब सवाल यह है कि क्या उत्तराखंड राज्य में आम आदमी पार्टी तीसरे विकल्प के रूप में उभरेगी ? विधानसभा चुनाव जीतने के लिए आम आदमी पार्टी ने अभी से अपनी पूरी ताकत झोंकनी शुरू कर दी है।
सबसे आश्चर्य की बात यह है जिस उत्तराखंड क्रान्ति दल ने राज्य के लिये संघर्ष किया था। वो दल खुद ही आपसी गुटबाज़ी में समाप्ति की और है,मतदाताओं ने क्षेत्रीय दल को कोई तवज्जो नहीं दी।
लेकिन इस बार राज्य के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी के चुनाव मैदान में दमखम के साथ आने से त्रिकोणीय संघर्ष होने की संभावना बढ़ गई है। ऐसे चुनावी ऊँट किस करवट बैठता है कोई नहीं जानता ?