

सी एम डी सामिया ग्रुप
कभी रूसी साम्राज्यवाद का असर अफगानियों पर था,क्योंकि उनके पड़ोसी देशों ने रूस के साथ मिल कर बेरोज़गारी दर को कम करने में मदद की थी। कभी यह बेरोज़गारी से बदहाल मुल्क था। धार्मिक कट्टरवाद किसी भी देश मे तब बढ़ता है,जब रोजगार घटता है, तब ये 70 के दशक से पहले की बात है। बदहाल अफगानिस्तान की त्रस्त सरकार को रूस से मदद मिली। जिससे एक तरह से अफगानिस्तान में रूस की कम्युनिस्ट साम्राज्यवाद के विस्तार हुआ था।
जैसे कि हर एक्शन का रिएक्शन होता है यहां भी कबाइलियों ने रूस के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया। इसका कूटनीतिक फायदा अमेरिका ने उठाया और अफगानी स्टूडेंट्स का संघठन बनाकर रूस से लड़ने के लिये लड़ाके खड़े कर दिये थे। इसके लिये अमेरिका ने लड़ाकों को रूस को खदेड़ने के लिये काफी हथियार और गोला बारूद दिया था।
स्टूडेंट्स का मतलब छात्र होता है उर्दू में इसे तालिबान कहा जाता है,बस यही से तालिबान की शुरुआत हुई थी। तब छात्रों के गुट तालिबान ने जिसकी अमेरिका ने मदद की थी,उसकी मदद से रूस समर्थित सरकार का पतन कर रूस को बेदखल किया गया था।
अमेरिका चाहता था कि अफगानिस्तान पर उसका वर्चस्व बना रहे,लेकिन अफगानिस्तान ने रूस को बेदखल कर सत्ता तो हासिल कर ली। लेकिन अमेरिका का वर्चस्व नही माना था। अफगानिस्तान में बेरोज़गारी और उनके कबाइली तहज़ीब ने धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ा दिया। इसलिए अरब के बेदखल जेहादियों ने अफगानिस्तान में शरण ली थी। अमेरिका में 9/11 की घटना होने के बाद अमेरिका ने तालिबान को चुन चुन कर ख़त्म किया था।
लेकिन पाकिस्तान ने तालिबान को आक्सीजन देकर अमेरिका को अफगानिस्तान में गुरिल्ला युद्ध में फसा दिया था। वियतनाम के तरह फसे अमेरिका ने ट्रम्प के सत्ता से जाते ही तालिबान से गुप्त समझौता कर लिया। एक प्लानिंग के तहत अमेरिका ने अपनी फौजो को वह से बुला लिया। अमेरिका से डरा हुआ तालिबान शेर बन गया और उसने धीरे धीरे सभी प्रांतो पर कब्ज़ा जमा लिया।
लोकतांत्रिक देश अफगानिस्तान से जिस क्रूरता की तस्वीरें आ रही है,दरअसल वो इस्लाम नहीं है और न ही इस्लाम ज़ुल्म करने को कहता है। लेकिन सत्ता के भूखे तालिबान ने अफगानिस्तान की रूह पर कब्ज़ा करके न केवल पूरे मुल्क की अवाम की जान को खतरे में डाल दिया है वरन इस्लाम को भी बदनाम करने का काम किया है। इस्लाम में कट्टरवाद नहीं है, तमाम मुस्लिम मुल्को में भी इस्लामी सरकारे है। लेकिन कही भी ऐसा ज़ोर ज़ुल्म नहीं हो रहा हैं। लोगो को लगता है कि विश्व के मुस्लिम मुल्क तालिबान का समर्थन करते है,लेकिन यह सच नहीं है। इसी झूठ के प्रोपोगंडा को मीडिया बड़ा चढ़ा कर दिखा रहा है।
हिन्दुस्तानी मुसलमान ने कभी तालिबान का समर्थन नहीं किया, न करेगा उसके दिल में हिन्दुस्तान बसता है।