– विक्की रस्तोगी
इलाहाबाद – इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि किसी केस में अगर कोई वकील पहले से जुड़ा हुआ है, तो उंसके स्थान पर दूसरा वकील तब तक वकालतनामा दाखिल नही कर सकता जब तक कि उसने पूर्व में जुड़े हुए वकील से एनओसी न ली हो। कोर्ट ने इस आदेश का सख्ती से पालन करने के लिए हाई कोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया है।
कोर्ट का कहना था कि इन दिनों यह प्रवति काफी हद तक देखी जा रही है कि किसी केस में पहले से जुड़े अधिवक्ता से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिए बगैर याचिकाकर्ता की तरफ से एफिडेविट लेकर दूसरा वकील अपना वकालतनामा दाखिल कर देता है। यह एक सही परंपरा नही है।
कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि बिना पूर्व में आबद्ध अधिवक्ता के अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) के दूसरे वकील का वकालतनामा केवल याची के हलफनामे के साथ स्वीकार न किया जाए। सुरेश राघवानी की अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने दिया।
याची की तरफ से पूर्व में अधिवक्ता शशिधर पांडेय को आबद्ध किया गया था।
जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान दूसरे वकील बृजेश कुमार मिश्रा कोर्ट में उपस्थित हुए और उन्होंने बताया कि उन्होंने याची के हलफनामे के साथ रजिस्ट्री में वकालतनामा दाखिल करने का प्रयास किया है।
उनका कहना था कि उन्होंने शशिधर पांडेय से इसकी एनओसी नहीं ली है। कोर्ट ने इसे उचित परंपरा नहीं माना। याचिकाकर्ता सुरेश राजवानी के विरूद्ध आगरा के सागर थाने में हत्या की कोशिश का केस दर्ज है, जिसमें उन्होंने अग्रिम जमानत की मांग की थी। कोर्ट ने अर्जी स्वीकार करते हुए अग्रिम जमानत मंजूर कर ली है।
(विक्की रस्तोगी हाई कोर्ट इलाहाबाद में वरिष्ठ अधिवक्ता है)