

काशीपुर – हाथों की कलाकारी का हुनर ऐसा मानों किसी मूर्ति को जीवंत रूप दे दिया हो, पूरी शिद्दत से अपनी कला से मूर्ति तराशने वाले इन हाथों की कलाकारी देख सभी हैरान रह जाते है। मिट्टी और सीमेंट से आकार देकर जो मूर्तियां तैयार होती है, जो मानों सजीव हो और महज उनमें प्राण डालने बाकी हो, और बोल पडे… जी हां ! ये वो कलाकार है जिनके पास हुनर तो है पर उस हुनर के कद्रदान नहीं यही वजह है, कि आज यह कला विलुप्त होती जा रही है, और जिन मूर्तिकारों ने इस कला को जीवित रखा है,वो भुखमरी की कगार पर है.. देखिये एक खास रिपोर्ट-
वॉलपेपर, पेंटिंग और आर्टिफिशियल मशीनों से निर्मित मूर्तियों के दौर में हाथों से बनी मूर्तियों की डिमांड ना मात्र की रह गयी है, एसे में हाथों से बनी मूर्ति के कद्रदान भी कम ही मिलते है। इस कला से जुड़े लोग आज भी अपनी कला को जीवित रख कर अपना भरण पोषण कर रहे है, लेकिन इन मूर्तिकारों को इनकी कला का वास्तविक मूल्य नहीं मिल पाता है.जिससे इस कला से जुड़े लोग आय के नये साधनों की ओर जाने लगे है।

जिस वजह से ये कला खत्म होती जा रही है, जबकि हाथों से मूर्ति तराश कर साकार रूप देने वाले इनकी कलाकारी को देख यही लगता है मानों सचमुच ही किसी को सामने खडा कर दिया हो, लेकिन इस मूर्तिकला से जुडे लोग अब धीरे धीरे इस कला से मुंह फेरने लगे है, क्योकि उनकी मेहनत का पूरा दाम भी उन्हे नहीं मिल पाता है, जिससे परिवार का भरण पोषण करना भी मुश्किल हो गया है।
वहीं मूर्तिकारों के हुनर को आगे बढ़ाने के लिए कई बार सरकार से भी मांग की गयी और इनकी इस कला से बनी मूर्तियों को बाजार देने के लिए सरकारी मदद की भी गुहार लगायी गयी। लेकिन कई सालों से ये मांगे सरकारी फाइलों में दब कर रह गयी, क्योकि इन हुनरबाजों के हुनर की कद्र सरकार तक नहीं करती है, यही वजह है कि आज एक अनोखी कला विलुप्तिकरण की कगार पर है।
ये हाथों से जीवंत मूर्ति तराशने वाले अपने हुनर को अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए दूसरे काम की ओर दौड रहे है, और मूर्तिकारों की ये कला अब विलुप्त होती जा रही है, ऐसे मे जो कुछ लोग इस कला से जुड़े भी है, वो भुखमरी की कगार पर है, जिनको आज भी आस है कि कभी तो उनके इस हुनर के कद्रदान मिलेंगे और उनकी इस कला की सराहना कर उनकी मेहनत और हुनर की पहचान को आगे बढ़ाने में सहायक होंगे।