
– प्रमोद शाह
कानून का शासन किसी भी लोकतांत्रिक देश का बुनियादी लक्षण है,भारत में भी संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत विधि के समक्ष समानता से इसे स्वीकार किया गया है । लेकिन जिस प्रकार भारत ही नही, दुनिया में सैकड़ों वर्ष के चिकित्सा विज्ञान के, अनुसंधान के बाद एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति को उपचार के लिए मान्यता दी गई है। उसकी एक वैश्विक व्यवस्था है, साथ ही भारत में इस उपचार प्रक्रिया में अनुसंधान और नियंत्रण के लिए आई.सी.एमआर का अस्तित्व है।
भारत में संवैधानिक प्रक्रिया से अस्तित्व में आई एक ऐसी चिकित्सा व्यवस्था जिस पर लोगों का भरोसा है और जो भारत में लोक व्यवस्था बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. उस चिकित्सा व्यवस्था पर स्वामी रामदेव का बिना किसी आधार, वैज्ञानिक अनुसंधान और साक्ष्यों के बगैर हमलावर हो जाना ,एक साधारण घटना नहीं है .. यह हमला भारत की संवैधानिक प्रक्रिया पर है ,विधि द्वारा स्थापित व्यवस्था पर है … भारतीय दंड संहिता में इस प्रकार के अपराधों के लिए एक अलग से अध्याय , अध्याय 9 है ।
रामदेव को विधि के शासन को ठेंगा दिखाने का साहस कहां से प्राप्त होता है। उनकी नाभी में अमृत्व कौन प्रदान करता है, पड़ताल इस तथ्य की होनी चाहिए..। पिछले वर्ष जिस प्रकार ड्रग कंट्रोल की मान्यता के बगैर कोरोनिल को एक चमत्कारिक दवा के रूप में उनके द्वारा लांच किया गया ,वह स्पष्ट रूप से प्रथम दृष्टया धारा 4/7 ओषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 ( Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act, 1954 का अपराध था, .. मामूली लीपापोती के बाद प्रकरण ठंडे बस्ते में चला गया। रामदेव अपने व्यवसाय उद्देश्य को साधने में सफल रहे..। पूरे वर्ष रामदेव की दवा भरपूर क्षमता के उत्पादन के बाद भी आउट ऑफ स्टॉक बनी रही.।
रामदेव के व्यवसाय और व्यवसायिक पद्धति में आपत्ति का कोई कारण नहीं है ,आखिर आयुर्वेद भी इस देश में मान्यता प्राप्त उपचार पद्धति है। लेकिन चिंताजनक तस्वीर यह है ,कि एक व्यक्ति संविधान द्वारा स्थापित व्यवस्था पर बिना किसी साक्ष्य के हमलावर होता है भ्रम पैदा करता है ,वह अंतिम रूप से इस देश के नागरिकों के सुरक्षित और भय मुक्त रहने के अधिकार पर चोट करता है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था तथा नेशन स्टेट के युग में राष्ट्र सर्वोच्च होता है। राष्ट्र का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों तथा गैर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करें ।इससे पहलेरामदेव की निरंकुश होती प्रवृत्ति ..देश की अन्य संवैधानिक संस्थाओं पर चोट करें उससे पहले उन्हें विधि के शासन का सबक सीखना जरुरी है । लेकिन सिखाएगा कौन ?यह एक यक्ष प्रश्न है।
(प्रमोद शाह की फेस बुक बाल से साभार)