– संजय नागपाल
भारत में पिछले वर्ष कोरोना काल में बहुत से इवेंट्स आयोजित किये गए। शायद इसीलिए कि जनता का ध्यान इस महामारी से हटाया जा सके। इस क्रम में ताली,थाली,टॉर्च जलाना व दिये जलाना प्रमुख रहे। अब क्योंकि इस महामारी को दूर करने की कोई दवा नही थी। लिहाज़ा गोबर मानसिकता ने गौ मूत्र व गोबर स्नान से कोरोना दूर करने के अवैज्ञानिक तरीके अमल में लाकर जनसंदेश दिए जाने लगे,परंतु अब जबकि कोविड-19 की वैक्सीन जनवरी 2021 में आ चुकी है।और आज देश के 18.5 करोड़ लोगों को वैक्सीनेट भी किया जा चुका है। फिर इस वक़्त गोबर स्नान द्वारा या गौ मूत्र पीकर कोरोना से बचने की बात करना,क्या वैक्सीन पर स्वयं प्रश्न चिन्ह लगाने जैसा नही है..?
कुलमिलाकर कोविड-19 की वैक्सीन विश्व समुदाय के साथ-साथ तैयार करना देश के लिए बड़ी उपलब्धि रही है। वैक्सीन निर्माण में सचमुच आज विकासशील भारत विकसित देशों के समकक्ष खड़ा हो गया है। यह बहुत गौरव की बात है। हमारे वैज्ञानिकों ने दिन-रात एक करके जल्द ही वैक्सीन खोज निकाली। जिसके लिए वैज्ञानिकों की रिसर्च टीम बधाई की पात्र है। लेकिन कुछ अतिबुद्धिजीवियों को अपने ही देश में निर्मित वैक्सीन पर या तो यकीन नही है या फिर जानबूझकर वैक्सीन की भारी कमी के कारण गोबर स्नान या गौ मूत्र के सेवन करके कोरोना से बचाव की जानकारी सार्वजनिक करना क्या उचित है..?
देश के आमजन को अवैज्ञानिक तरीकों से कोरोना महामारी का ईलाज सुझाना कितना जायज़ है। अगर विपक्ष के नेता वैक्सीन की ख़िलाफ़त करें तो कुछ लोग बबाल करने लगते हैं।हालाँकि मैं भारत में निर्मित वैक्सीन की ख़िलाफ़त करने वालों का प्रबल विरोधी हूँ,परंतु यदि यही कार्य कोई सांसद या विधायक करे तो इसे मूक सहमति द्वारा कोविड-19 की दूसरी दवा ईजाद करने का दर्जा देना वास्तव में शर्मनाक ही कहा जायेगा।इन दावों,वादों पर केंद्र सरकार की चुप्पी पर भी सवाल खड़े होंगे कि जब देश में निर्मित प्रभावी वैक्सीन है तो फिर उसके समकक्ष अवैज्ञानिक दावों पर अपनी मूक सहमति न दे। इससे जनता के बीच वैक्सीन पर भरोसा कम होता है………