

रूद्रपुर – भाजपा जिला मीडिया प्रभारी एवं पूर्व पार्षद ललित मिगलानी ने शासन प्रशासन से जीवन रक्षक दवा रेमडेसिविर की कालाबाजारी को रोकने के लिए कड़े कदम उठाये जाने की मांग की है। मीडिया को जारी बयान में मिगलानी ने कहा कि कोरोना के बढ़ते कहर के बीच इन दिनों रेमडिसिविर इंजेक्शन की जमकर कालाबाजारी हो रही है। आपदा को अवसर बनाने की सोच रखने वाले कुछ लोग इस दवा के नाम पर मरीजों के परिजनों की जेबों पर खुलेआम डाका डाल रहे हैं। जिस इंजेक्शन की कीमतें सरकार ने 2200 से 2400 रूपये निर्धारित की है वह कालाबाजारी के चलते मरीज तक 25 हजार पैसठ हजार रूपये तक में पहुंच रहा है।
चिकित्सकों ने इस इंजेक्शन को लेकर अफरा तफरी का माहौल कायम कर रखा है। कोरोना संक्रमित मरीज के लिए रेमडिसिविर इंजेक्शन इस तरह लिखे जा रहे है, जैसे यह संजीवनी बूटी हो। जबकि देश के बड़े से बड़े डॉक्टर यह बता रहे हैं कि रेमडिसिविर दवा का कोरोना मरीज पर कोई कारगर नहीं है और इसकी कोइ गारंटी नहीं है। इस इंजेक्शन को लेकर बाजार में ऐसा माहौल तैयार कर दिया गया है। जैसे कि कोरोना की एकमात्र दवा यही हो। जबकि चिकित्सक भी जानते हैं कि यह दवा बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं है, इसके बावजूद आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए भी इस इंजेक्शन को अनिवार्य रूप से लगाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। जिसके चलते इस इंजेक्शन की मांग बाजार में लगातार बढ़ रही है।
भाजपा नेता मिगलानी ने शासन प्रशासन से रेमडेसिविर की कालाबाजारी रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की मांग की है। इसके लिए उन्होंने जिला प्रशासन को सुझाव देते हुए अनुरोध किया है कि कि जिन कोविड अस्पतालों और मेडिकल स्टोरों को स्वास्थ्य विभाग द्वारा रेमडिसिविर इंजेक्शन दिये जा रहे हैं। उनके नाम और दिये गये इंजेक्शनों की संख्या को सोशल मीडिया में सार्वजनिक किया जाये। साथ ही रेमडेसिविर की बिक्री करनेवाले कोविड अस्पताल और मेडिकल स्टोरों की प्रतिदिन की बिक्री का पूरा ब्यौरा तलब कर इसे भी रोजाना लिया जाए । इससे एक तो हर किसी को यह जानकारी मिलेगी कि किस अस्पताल में इंजेक्शन उपलब्ध है। जिस अस्पताल में यह इंजेक्शन उपलब्ध होगा वह इसे मरीज को उपलब्ध कराने में आनाकानी नहीं करेगा। वर्तमान में हो यह रहा है कि जिस कोविड अस्पताल में इंजेक्शन दिये गये हैं, वह मरीज को डायरेक्ट उपलब्ध कराने के बजाय इसे दलालों के माध्यम से कई गुना कीमत पर उपलब्ध करा रहे हैं। जिसके चलते मरीज को महंगे दामों पर इंजेक्शन खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यदि स्वास्थ्य विभाग कुछ कड़े कदम उठाये तो ऐसी स्थिति को रोका जा सकता है।