संकलन- सुशील गावा
”प्यार की पाकीज़गी को याद करना है लैला मजनू का नाम मुहब्बत करने वालो की फेहरिस्त में अमर हो गया। उनकी मुहब्बत की पाकीज़गी आज भी दुनिया भर में कहानियों किस्सों के रूप में हमेशा के लिये यादगार बन गई है।”
जी हाँ, भारत पाकिस्तान की सीमा पर लगता है एक मोहब्बत का मेला । यह मेला लैला मजनू की मजार पर लगता है । ऐसी मान्यता है कि दोनों प्रेमी युगल ने यहीं आकर प्राण त्यागा था । पीने को पानी नहीं मिला । दोनों का जीवन प्यास से तड़पकर तड़पकर खतम हुआ था । यह जगह राजस्थान के श्री गंगानगर जिले के अनूपगढ़ (विंजोर ) में है । विंजोर अनूपगढ़ के पश्चिम में 10 किलोमीटर और पाकिस्तान की सीमा से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । मजार की जमीन का रकबा छः बीघा है , जिसके आधे में कब्रस्तान है ।
इस मजार पर हिंदू मुसलमान दोनों आते हैं । पहले पाकिस्तान से भी लोग आते थे । जब से तार बाड़ खींची गयी है, वहाँ से आने वाले लोगों का हुजूम रुक गया है । मजार पर एक घण्टा टंगा है ,जिसे हिंदू बजाते हैं । मुसलमान सजदा करते हैं । बड़ी मजार मजनू की है और छोटी लैला की । मजार पर दो दीपक भी जलते हैं । ये अखण्ड जलते हैं । लैला व मजनू 11 वीं शताब्दी में पैदा हुए थे । चूँकि ये अखण्ड भारत मे पैदा हुए थे , इसलिए भारत और पाकिस्तान दोनों की इनमें गहरी आस्था व विश्वास है । इस जगह पर दोनों लैला के भाई के डर से आकर छिपे थे और पानी न मिलने के कारण उनकी जान चली गयी थी ।
(लैला मजनू)
इन मजारों पर हर वर्ष आषाढ़ मास में 15 जून को मेले का आयोजन किया जाता था , लेकिन लोगों के श्रद्धा और आकर्षण को ध्यान में रखते हुए अब इस मेले की अवधि 5 दिन की कर दी गयी है । इन मजारों पर हजारों की संख्या में प्रेमी शिरकत करते हैं और अपने प्यार के सफल होने की दुआ करते हैं । नव विवाहित जोड़े भी आते हैं, जो अपने वैवाहिक जीवन के आजन्म स्थाईत्व की कामना करते हैं । गौरतलब है कि विंजोर में तकरीबन हर साल बाढ़ आती है , पर बाढ़ का पानी इन मजारों तक नहीं आता । घग्घर नदी भी इन प्रेमी जोड़ों की चिर निद्रा में खलल नहीं डालती ।
इंग्लैंड के म्यूजियम में इन प्रेमी युगल का चित्र संरक्षित कर सुरक्षित रखा गया है । तस्वीर में कोई खास आकर्षण नहीं है । लैला का चेहरा तो कुरुप नजर आता है , लेकिन सच्चाई है कि दोनों में सच्चा प्यार था । दोनों के सच्चे प्यार की खूश्बू आज भी यहाँ की फिजाओं में तैर रही है , जिससे खींचे हजारों प्रेमी जोड़े इन मजारों पर आते हैं और शीश नवाते हैं । वास्तविक सौंदर्य हृदय की पवित्रता है । वाह्य रुप से इसका कोई सम्बंध नहीं होता । आंतरिक सौंदर्य हीं सब कुछ होता है । सच्चा और पवित्र ।
मजनू ने कभी कहा था – ” मैं उन दीवारों से गुजरता जाऊंगा, जिनसे लैला गुजरती है और मैं उस दीवार को चूमा करूंगा, जिनसे लैला गुजरती है “